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कृष्ण ने राधा से पूछा - ऐसी एक जगह बताओ जहाँ मैं नहीं हूँ ...... राधा ने मुस्कुरा के कहा - बस मेरे नसीब में .... फिर राधा ने कृष्ण से पूछा - हमारा विवाह क्यों नहीं हुआ? कृष्ण ने मुस्कुरा कर कहा - राधे! विवाह के लिये दो लोगों का होना आवश्यक है ....हम तो एक हैं ......

Thursday, September 8, 2011

निष्ठुर संध्या

30 comments:

Kailash Sharma said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अँधेरा ही है जो उजाले के महत्व को बताता है ..इसके बिना उसका महत्त्व भी कुछ नहीं ...

सुन्दर अभिव्यक्ति

Anju (Anu) Chaudhary said...

बहुत सुन्दर मन के भावो से सजी अभिव्यक्ति
नियति ये ही है ....जो होना है वही होगा

Rakesh Kumar said...

अनुपम प्रस्तुति है आपकी.
सच में जब अँधेरा न भाता हो
और उजाले को आगोश में ले बढ़ता ही आये.
तो भयावय लगता है.
यदि स्थान भी
पृथिवी पर शमशान हो,तो भूत
प्रेतों का बसेरा नजर आने लगता है.

रश्मि प्रभा... said...

पृथ्वी की गोद में यामिनी... कितनी गहरी सोच ... उजाले का भय मिटाती

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर..... आखिरी पंक्तियाँ बहुत प्रभावित करती हैं......

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

पहली बार आपके ब्लाग पर हूं।
बहुत सुंदर रचना।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

क्या बात है... वसुंधरा को आधार बना कर कितना गहन चिंतन... वाह..!

किन्तु शायद अँधेरे भी निराशा नहीं आशा का ही द्योतक है....

सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए सादर साधुवाद....

हरकीरत ' हीर' said...

कंधे पर सिर रखकर
वह रोया यूँ फुट-फुट कर
जैसे पनाह मिली हो धरती की
किसी सूखे पत्ते की शाख से टूट कर ...

वाह ! बहुत खूब .....
अगर आपके पास ऐसी और क्षणिकायें हों तो अपनी दस ,बारह क्षनिकाएं अपने संक्षिप्त परिचय और तस्वीर के साथ भेज दें
'सरस्वती-सुमन' पत्रिका के लिए मुझे इस मेल पर ....

harkirathaqeer@gmail.com

हरकीरत ' हीर' said...

अनीता जी ,
बातचीत के लिए आप मुझे मेल कर सकती हैं ....
पत्रिका की चिंता न करें ..
ये संग्रह बहुत ही महवपूर्ण होगा और इसमें छपी रचनायें भी महत्त्व रखती हैं ...
क्योंकि ऐसे अंक अक्सर शोध के लिए सुरक्षित रख लिए जाते हैं ...
और क्षणिकाओं पर अभी तक इस तरह कोई अंक नहीं निकला ...
ब्लॉग जगत से मैं सभी क्षणिका लिखने वालों से ले चुकी हूँ ...
इसमें kai बड़ी बड़ी हस्तियों की भी क्षनिकाएं शामिल हैं ....
रचनायें छपने के बाद अंक आपको मिल जायेगा ....

palash said...

aapse tahe dil se kshma chahti hun , jo aaj tk aapke blog par likha nahi . kai baar ham pad lete hai mager kuch samayabhaw k karan likh nahi paate, lekin aapka shikayat karnaa hame achchha laga , ham jisko apna maante hai usse hi to kuch kahte hai , so etna apnaa maanne ka sukriyaa .. aap bahut achchha likhte hai ..

ashish said...

सुँदर प्रभावशाली अभिव्यक्ति. , आभार .

ρяєєтii said...

Waaaah,,, Nice Blog Aniee di... aur bahut hi sundar bhaaw..!

रविकर said...

साढ़े छह सौ कर रहे, चर्चा का अनुसरण |
सुप्तावस्था में पड़े, कुछ पाठक-उपकरण |

कुछ पाठक-उपकरण, आइये चर्चा पढ़िए |
खाली पड़ा स्थान, टिप्पणी अपनी करिए |

रविकर सच्चे दोस्त, काम आते हैं गाढे |
आऊँ हर हफ्ते, पड़े दिन साती-साढ़े ||

http://charchamanch.blogspot.com/

Rakesh Kumar said...

आप मेरे ब्लॉग पर आयीं,इसके लिए आभारी हूँ.
एक बार फिर मेरी नई पोस्ट पर दर्शन दीजियेगा.

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 21/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Anupama Tripathi said...

अँधेरे की भी कोई वजह होती है ...
हर रात की सुबह होती है ...
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ...बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आना ...
आभार.

अजय कुमार said...

अंधेरा है तो उजाले की आस है । अच्छी रचना ।

Rajesh Kumari said...

आपकी कविता बहुत अच्छी लगी
पहली बार आपको पढ़ा आपके ब्लॉग पर आना सार्थक हुआ !मेरे ब्लॉग पर आमंत्री करती हूँ.

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर भाव समन्वय्।

रेखा said...

सुन्दर और प्रभावी अभिव्यक्ति ....

Rakesh Kumar said...

आपकी अगली प्रस्तुति का इंतजार है.

मेरे ब्लॉग को भी न भूलिएगा,प्लीज.
मेरी पोस्ट 'सीता जन्म-आध्यात्मिक चिंतन-४'
पर आपका इंतजार है.

Mansoor ali Hashmi said...

बहुत खूब, कोई औरत ही लिख सकती है एसी रचना, धरती की सच्ची बेटी.

वास्तविक रूप में संध्या को रात्रि में परिवर्तित होने का दुःख अनुभव करती धरती का सजीव चित्रण.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर भावों से सजी हुई अच्छी रचना प्रस्तुत की है आपने!

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही खूबसूरत कविता है आपकी बहुत -बहुत बधाई

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही खूबसूरत कविता है आपकी बहुत -बहुत बधाई

कविता रावत said...

सच जीवन के घोर निराशा के क्षण में बहुत बार हम यूँ ही न जाने कितने बार अकेले होकर अंधेरों में भटकते है.. फिर भी अँधेरा ही तो है जो हमें उजाले में जीना सिखाता है..
बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुति के लिए आभार!

Mamta Bajpai said...

नमस्ते सुनीता जी अप के ब्लॉग पर पहली बार आई हूँ आप की कविताएँ बहुत अच्छी लगी अनधेरे उजाले का चक्र निश्चित है

सटीक रचना

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...






आदरणीया अनिता अग्रवाल जी
सस्नेहाभिवादन !

सुंदर ब्लॉग और ख़ूबसूरत प्रस्तुति …अर्थात् सुखद संगम !
हीरजी जैसी विदुषी सहित इतने गुणीजन
प्रशंसा कर चुके … … …
मैं भी आभार और साधुवाद कहूंगा … :)

बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार